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मेरे सपनो के भारत पर निबंध

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मेरे सपनो के भारत पर निबंध

स्वप्न देखना एक जागृत-चेतन प्रवृत्ति है। अस्वस्थ, हीन और दुर्बल हृदय व्यक्ति बहुरंगी सपने नहीं देख सकते । संकल्पशील और साहसी लोग सदैव अपने संपनों से काल देवता का श्रृंगार  करते आए हैं । 

उन्हें अपने सपनों से मोह हुआ करता है। उन्होंने अपने सपनों को अपने रक्त कणों से सींचा एवं उनको साकार भी किया है। इस देश के एक वयोवृद्ध संत ने भी इस महान देश के लिए सपना देखा था । 

इस सपने को साकार करने के लिए उसने अपने जीवन का सर्वस्व होम कर दिया। वह सपना लाखों-करोड़ों का सपना बन गया ।

अपने इस विराट देश के लिए मेरा भी एक सपना है, जिसको पूरा करने के लिए मैं प्रयत्नशील हूँ। साथ ही लाखों देशवासियों का भी आह्वान करता हूँ कि वे अपनी इस मातृभूमि के लिए स्वयं भी बहुरंगी सपने देखें ।

मेरी यही कामना है कि-

मेरे भारत देश में न कोई भूखा हो, न रोगी हो, न नग्न हो, न गरीब हो, और न शिक्षा से विहीन हो। हे प्रभु! मेरा  भारत देश की उन्नति हो ।

अपने सपने को साकार करने के लिए मुझे अपने देश के सांस्कृतिक, आर्थिक, बौद्धिक और राजनीतिक सभी पहलुओं को देखना होगा। 

इसके सांस्कृतिक भविष्य के संबंध में मेरा सपना बड़ा ही मनोरम और आशावर्धक है। यों तो सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत ने नित ही सदैव नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं तथा अपनी सांस्कृतिक विरासत पर भारत को सदा से ही अभिमाना रहा  है। 

परंतु जिस सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत का सपना मैं देख रहा हूँ वह और भी भव्य और चमत्कारपूर्ण हैं। मेरे सपने के अनुसार प्रत्येक नगर और उपनगर में बड़े-बड़े सांस्कृतिक -केन्द्र स्थापित हो चुके होंगे जहाँ विविध प्रकार की संस्कृतिक गतिविधियाँ संपन्न होंगी। 

राष्ट्रीय,सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ विविध अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का भी आयोजन होगा, जिससे एकता और सद्भाव में आशातीत अभिवृद्धि होगी।

आर्थिक दृष्टि से भारत आज भी विषम दौर से गुजर रहा है। यद्यपि अपने आर्थिक निर्माण की दशा में इसने कई मंजिलों को पार कर लिया है फिर भी यहाँ के निवासियों को भरपेट भोजन नहीं मिलता । 

यहाँ के किसान जो आज अपना खून-पसीना एक करके पूंजीपतियों और सामंतों के लिए अन्न पैदा करते हैं वे नवीन आर्थिक परिवर्तनों से समृद्ध हो उठेंगे। गाँव-गाँव में वनरोपन के नवीन साधनों में अभिवृद्धि होगी। 

गाँव-गाँव में विद्युत का पक्की सड़कों का जाल-सा बिछ जाएगा। पानी की निकासी के लिए नालियों का भी उचित प्रबंध कर लिया जाएगा। हर घर में दूरदर्शन, दूरभाष और घूमने के लिए कार होगी। 

जहाँ तक नगरों का संबंध है, उनमें भारी औद्योगिक विकास हो जाएगा। मजदूरों की दशा सुधर जाएगी। मिलों में मजदूरों की भागीदारी होगी। उत्पादन के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण हो जाएगा। कहने का तात्पर्य है कि आर्थिक असमानता दूर होगी, जिससे भारत संसार के अतिसंपन्न देशों की श्रेणी में जा खड़ा होगा ।

सभ्यता के आदि काल से भारत ने विश्व को धर्म की दृष्टि दी है।

 जयशंकर प्रसादजी ने कहा है-विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम|

किंतु समय के क्रूर आघातों ने, इतिहास की निर्मम करवटों ने और अपराधीनता की बेड़ियों ने धार्मिक नेतृत्व को हमसे सदा के लिए छीनने का असफल प्रयास किया है। 

सभी दिन समान नहीं होते। भारत ने शांति, व्यापार और ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विश्व के अनेक प्रगतिशील देशों से सहयोग करना आरंभ कर दिया है। 

अब वह दिन दूर नहीं है जब धार्मिक क्षेत्र में भी भारत फिर से विश्व का नेतृत्व करेगा। मैं समझता हूँ कि धर्म निरपेक्ष इस देश में धर्म की परिकल्पना और धारणा में अंतर आ जाएगा। वह केवल मात्र एक व्यक्तिगत साधना न बनकर व्यक्ति में सामाजिक दायित्व, राष्ट्रीय ,भाईचारा, ईमानदारी और नैतिक गुणों की अभिवृद्धि भी करेगा ।

आज भारत का राजनीतिक क्षितिज नाना प्रकार के विरोधी रंगों से मटमैला-सा हो उठा है। मैं समझता हूँ कि मेरा यह अत्यंत मधुर सपना, हमारे अपने प्रयत्नों से पूर्ण होगा। और तब सच्चे अर्थों में प्रजा का कल्याण होगा।

मेरा यह मधुर सपना केवल संभावनाओं पर ही आधारित नहीं है वरन् देश का संपूर्ण मानस जिस ढंग से क्रियाशील है, उससे मुझे अपना सपना शीघ्र ही साकार होने वाला प्रतीत हो रहा है। 

मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी है कि मेरा सपना पूरा होते ही भारत विश्व का सर्वशक्तिमान देश होगा। ऐसी भविष्यवाणियाँ सुनने को भी मिल रही हैं। जिस प्रकार से हम अपने विकास की ओर अग्रसर हैं उससे मेरे सपने में और भी चार चाँद लग जाएँगे ।

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स्वप्न देखना एक जागृत-चेतन प्रवृत्ति है। अस्वस्थ, हीन और दुर्बल हृदय व्यक्ति बहुरंगी सपने नहीं देख सकते । संकल्पशील और साहसी लोग सदैव अपने संपनों से काल देवता का श्रृंगार  करते आए हैं । 

उन्हें अपने सपनों से मोह हुआ करता है। उन्होंने अपने सपनों को अपने रक्त कणों से सींचा एवं उनको साकार भी किया है। इस देश के एक वयोवृद्ध संत ने भी इस महान देश के लिए सपना देखा था । 

इस सपने को साकार करने के लिए उसने अपने जीवन का सर्वस्व होम कर दिया। वह सपना लाखों-करोड़ों का सपना बन गया ।

अपने इस विराट देश के लिए मेरा भी एक सपना है, जिसको पूरा करने के लिए मैं प्रयत्नशील हूँ। साथ ही लाखों देशवासियों का भी आह्वान करता हूँ कि वे अपनी इस मातृभूमि के लिए स्वयं भी बहुरंगी सपने देखें ।

मेरी यही कामना है कि-

मेरे भारत देश में न कोई भूखा हो, न रोगी हो, न नग्न हो, न गरीब हो, और न शिक्षा से विहीन हो। हे प्रभु! मेरा  भारत देश की उन्नति हो ।

अपने सपने को साकार करने के लिए मुझे अपने देश के सांस्कृतिक, आर्थिक, बौद्धिक और राजनीतिक सभी पहलुओं को देखना होगा। 

इसके सांस्कृतिक भविष्य के संबंध में मेरा सपना बड़ा ही मनोरम और आशावर्धक है। यों तो सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत ने नित ही सदैव नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं तथा अपनी सांस्कृतिक विरासत पर भारत को सदा से ही अभिमाना रहा  है। 

परंतु जिस सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत का सपना मैं देख रहा हूँ वह और भी भव्य और चमत्कारपूर्ण हैं। मेरे सपने के अनुसार प्रत्येक नगर और उपनगर में बड़े-बड़े सांस्कृतिक -केन्द्र स्थापित हो चुके होंगे जहाँ विविध प्रकार की संस्कृतिक गतिविधियाँ संपन्न होंगी। 

राष्ट्रीय,सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ विविध अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का भी आयोजन होगा, जिससे एकता और सद्भाव में आशातीत अभिवृद्धि होगी।

आर्थिक दृष्टि से भारत आज भी विषम दौर से गुजर रहा है। यद्यपि अपने आर्थिक निर्माण की दशा में इसने कई मंजिलों को पार कर लिया है फिर भी यहाँ के निवासियों को भरपेट भोजन नहीं मिलता । 

यहाँ के किसान जो आज अपना खून-पसीना एक करके पूंजीपतियों और सामंतों के लिए अन्न पैदा करते हैं वे नवीन आर्थिक परिवर्तनों से समृद्ध हो उठेंगे। गाँव-गाँव में वनरोपन के नवीन साधनों में अभिवृद्धि होगी। 

गाँव-गाँव में विद्युत का पक्की सड़कों का जाल-सा बिछ जाएगा। पानी की निकासी के लिए नालियों का भी उचित प्रबंध कर लिया जाएगा। हर घर में दूरदर्शन, दूरभाष और घूमने के लिए कार होगी। 

जहाँ तक नगरों का संबंध है, उनमें भारी औद्योगिक विकास हो जाएगा। मजदूरों की दशा सुधर जाएगी। मिलों में मजदूरों की भागीदारी होगी। उत्पादन के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण हो जाएगा। कहने का तात्पर्य है कि आर्थिक असमानता दूर होगी, जिससे भारत संसार के अतिसंपन्न देशों की श्रेणी में जा खड़ा होगा ।

सभ्यता के आदि काल से भारत ने विश्व को धर्म की दृष्टि दी है।

 जयशंकर प्रसादजी ने कहा है-विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम|

किंतु समय के क्रूर आघातों ने, इतिहास की निर्मम करवटों ने और अपराधीनता की बेड़ियों ने धार्मिक नेतृत्व को हमसे सदा के लिए छीनने का असफल प्रयास किया है। 

सभी दिन समान नहीं होते। भारत ने शांति, व्यापार और ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विश्व के अनेक प्रगतिशील देशों से सहयोग करना आरंभ कर दिया है। 

अब वह दिन दूर नहीं है जब धार्मिक क्षेत्र में भी भारत फिर से विश्व का नेतृत्व करेगा। मैं समझता हूँ कि धर्म निरपेक्ष इस देश में धर्म की परिकल्पना और धारणा में अंतर आ जाएगा। वह केवल मात्र एक व्यक्तिगत साधना न बनकर व्यक्ति में सामाजिक दायित्व, राष्ट्रीय ,भाईचारा, ईमानदारी और नैतिक गुणों की अभिवृद्धि भी करेगा ।

आज भारत का राजनीतिक क्षितिज नाना प्रकार के विरोधी रंगों से मटमैला-सा हो उठा है। मैं समझता हूँ कि मेरा यह अत्यंत मधुर सपना, हमारे अपने प्रयत्नों से पूर्ण होगा। और तब सच्चे अर्थों में प्रजा का कल्याण होगा।

मेरा यह मधुर सपना केवल संभावनाओं पर ही आधारित नहीं है वरन् देश का संपूर्ण मानस जिस ढंग से क्रियाशील है, उससे मुझे अपना सपना शीघ्र ही साकार होने वाला प्रतीत हो रहा है। 

मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी है कि मेरा सपना पूरा होते ही भारत विश्व का सर्वशक्तिमान देश होगा। ऐसी भविष्यवाणियाँ सुनने को भी मिल रही हैं। जिस प्रकार से हम अपने विकास की ओर अग्रसर हैं उससे मेरे सपने में और भी चार चाँद लग जाएँगे ।

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स्वप्न देखना एक जागृत-चेतन प्रवृत्ति है। अस्वस्थ, हीन और दुर्बल हृदय व्यक्ति बहुरंगी सपने नहीं देख सकते । संकल्पशील और साहसी लोग सदैव अपने संपनों से काल देवता का श्रृंगार  करते आए हैं । 

उन्हें अपने सपनों से मोह हुआ करता है। उन्होंने अपने सपनों को अपने रक्त कणों से सींचा एवं उनको साकार भी किया है। इस देश के एक वयोवृद्ध संत ने भी इस महान देश के लिए सपना देखा था । 

इस सपने को साकार करने के लिए उसने अपने जीवन का सर्वस्व होम कर दिया। वह सपना लाखों-करोड़ों का सपना बन गया ।

अपने इस विराट देश के लिए मेरा भी एक सपना है, जिसको पूरा करने के लिए मैं प्रयत्नशील हूँ। साथ ही लाखों देशवासियों का भी आह्वान करता हूँ कि वे अपनी इस मातृभूमि के लिए स्वयं भी बहुरंगी सपने देखें ।

मेरी यही कामना है कि-

मेरे भारत देश में न कोई भूखा हो, न रोगी हो, न नग्न हो, न गरीब हो, और न शिक्षा से विहीन हो। हे प्रभु! मेरा  भारत देश की उन्नति हो ।

अपने सपने को साकार करने के लिए मुझे अपने देश के सांस्कृतिक, आर्थिक, बौद्धिक और राजनीतिक सभी पहलुओं को देखना होगा। 

इसके सांस्कृतिक भविष्य के संबंध में मेरा सपना बड़ा ही मनोरम और आशावर्धक है। यों तो सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत ने नित ही सदैव नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं तथा अपनी सांस्कृतिक विरासत पर भारत को सदा से ही अभिमाना रहा  है। 

परंतु जिस सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत का सपना मैं देख रहा हूँ वह और भी भव्य और चमत्कारपूर्ण हैं। मेरे सपने के अनुसार प्रत्येक नगर और उपनगर में बड़े-बड़े सांस्कृतिक -केन्द्र स्थापित हो चुके होंगे जहाँ विविध प्रकार की संस्कृतिक गतिविधियाँ संपन्न होंगी। 

राष्ट्रीय,सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ विविध अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का भी आयोजन होगा, जिससे एकता और सद्भाव में आशातीत अभिवृद्धि होगी।

आर्थिक दृष्टि से भारत आज भी विषम दौर से गुजर रहा है। यद्यपि अपने आर्थिक निर्माण की दशा में इसने कई मंजिलों को पार कर लिया है फिर भी यहाँ के निवासियों को भरपेट भोजन नहीं मिलता । 

यहाँ के किसान जो आज अपना खून-पसीना एक करके पूंजीपतियों और सामंतों के लिए अन्न पैदा करते हैं वे नवीन आर्थिक परिवर्तनों से समृद्ध हो उठेंगे। गाँव-गाँव में वनरोपन के नवीन साधनों में अभिवृद्धि होगी। 

गाँव-गाँव में विद्युत का पक्की सड़कों का जाल-सा बिछ जाएगा। पानी की निकासी के लिए नालियों का भी उचित प्रबंध कर लिया जाएगा। हर घर में दूरदर्शन, दूरभाष और घूमने के लिए कार होगी। 

जहाँ तक नगरों का संबंध है, उनमें भारी औद्योगिक विकास हो जाएगा। मजदूरों की दशा सुधर जाएगी। मिलों में मजदूरों की भागीदारी होगी। उत्पादन के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण हो जाएगा। कहने का तात्पर्य है कि आर्थिक असमानता दूर होगी, जिससे भारत संसार के अतिसंपन्न देशों की श्रेणी में जा खड़ा होगा ।

सभ्यता के आदि काल से भारत ने विश्व को धर्म की दृष्टि दी है।

 जयशंकर प्रसादजी ने कहा है-विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम|

किंतु समय के क्रूर आघातों ने, इतिहास की निर्मम करवटों ने और अपराधीनता की बेड़ियों ने धार्मिक नेतृत्व को हमसे सदा के लिए छीनने का असफल प्रयास किया है। 

सभी दिन समान नहीं होते। भारत ने शांति, व्यापार और ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विश्व के अनेक प्रगतिशील देशों से सहयोग करना आरंभ कर दिया है। 

अब वह दिन दूर नहीं है जब धार्मिक क्षेत्र में भी भारत फिर से विश्व का नेतृत्व करेगा। मैं समझता हूँ कि धर्म निरपेक्ष इस देश में धर्म की परिकल्पना और धारणा में अंतर आ जाएगा। वह केवल मात्र एक व्यक्तिगत साधना न बनकर व्यक्ति में सामाजिक दायित्व, राष्ट्रीय ,भाईचारा, ईमानदारी और नैतिक गुणों की अभिवृद्धि भी करेगा ।

आज भारत का राजनीतिक क्षितिज नाना प्रकार के विरोधी रंगों से मटमैला-सा हो उठा है। मैं समझता हूँ कि मेरा यह अत्यंत मधुर सपना, हमारे अपने प्रयत्नों से पूर्ण होगा। और तब सच्चे अर्थों में प्रजा का कल्याण होगा।

मेरा यह मधुर सपना केवल संभावनाओं पर ही आधारित नहीं है वरन् देश का संपूर्ण मानस जिस ढंग से क्रियाशील है, उससे मुझे अपना सपना शीघ्र ही साकार होने वाला प्रतीत हो रहा है। 

मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी है कि मेरा सपना पूरा होते ही भारत विश्व का सर्वशक्तिमान देश होगा। ऐसी भविष्यवाणियाँ सुनने को भी मिल रही हैं। जिस प्रकार से हम अपने विकास की ओर अग्रसर हैं उससे मेरे सपने में और भी चार चाँद लग जाएँगे ।

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स्वप्न देखना एक जागृत-चेतन प्रवृत्ति है। अस्वस्थ, हीन और दुर्बल हृदय व्यक्ति बहुरंगी सपने नहीं देख सकते । संकल्पशील और साहसी लोग सदैव अपने संपनों से काल देवता का श्रृंगार  करते आए हैं । 

उन्हें अपने सपनों से मोह हुआ करता है। उन्होंने अपने सपनों को अपने रक्त कणों से सींचा एवं उनको साकार भी किया है। इस देश के एक वयोवृद्ध संत ने भी इस महान देश के लिए सपना देखा था । 

इस सपने को साकार करने के लिए उसने अपने जीवन का सर्वस्व होम कर दिया। वह सपना लाखों-करोड़ों का सपना बन गया ।

अपने इस विराट देश के लिए मेरा भी एक सपना है, जिसको पूरा करने के लिए मैं प्रयत्नशील हूँ। साथ ही लाखों देशवासियों का भी आह्वान करता हूँ कि वे अपनी इस मातृभूमि के लिए स्वयं भी बहुरंगी सपने देखें ।

मेरी यही कामना है कि-

मेरे भारत देश में न कोई भूखा हो, न रोगी हो, न नग्न हो, न गरीब हो, और न शिक्षा से विहीन हो। हे प्रभु! मेरा  भारत देश की उन्नति हो ।

अपने सपने को साकार करने के लिए मुझे अपने देश के सांस्कृतिक, आर्थिक, बौद्धिक और राजनीतिक सभी पहलुओं को देखना होगा। 

इसके सांस्कृतिक भविष्य के संबंध में मेरा सपना बड़ा ही मनोरम और आशावर्धक है। यों तो सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत ने नित ही सदैव नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं तथा अपनी सांस्कृतिक विरासत पर भारत को सदा से ही अभिमाना रहा  है। 

परंतु जिस सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत का सपना मैं देख रहा हूँ वह और भी भव्य और चमत्कारपूर्ण हैं। मेरे सपने के अनुसार प्रत्येक नगर और उपनगर में बड़े-बड़े सांस्कृतिक -केन्द्र स्थापित हो चुके होंगे जहाँ विविध प्रकार की संस्कृतिक गतिविधियाँ संपन्न होंगी। 

राष्ट्रीय,सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ विविध अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का भी आयोजन होगा, जिससे एकता और सद्भाव में आशातीत अभिवृद्धि होगी।

आर्थिक दृष्टि से भारत आज भी विषम दौर से गुजर रहा है। यद्यपि अपने आर्थिक निर्माण की दशा में इसने कई मंजिलों को पार कर लिया है फिर भी यहाँ के निवासियों को भरपेट भोजन नहीं मिलता । 

यहाँ के किसान जो आज अपना खून-पसीना एक करके पूंजीपतियों और सामंतों के लिए अन्न पैदा करते हैं वे नवीन आर्थिक परिवर्तनों से समृद्ध हो उठेंगे। गाँव-गाँव में वनरोपन के नवीन साधनों में अभिवृद्धि होगी। 

गाँव-गाँव में विद्युत का पक्की सड़कों का जाल-सा बिछ जाएगा। पानी की निकासी के लिए नालियों का भी उचित प्रबंध कर लिया जाएगा। हर घर में दूरदर्शन, दूरभाष और घूमने के लिए कार होगी। 

जहाँ तक नगरों का संबंध है, उनमें भारी औद्योगिक विकास हो जाएगा। मजदूरों की दशा सुधर जाएगी। मिलों में मजदूरों की भागीदारी होगी। उत्पादन के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण हो जाएगा। कहने का तात्पर्य है कि आर्थिक असमानता दूर होगी, जिससे भारत संसार के अतिसंपन्न देशों की श्रेणी में जा खड़ा होगा ।

सभ्यता के आदि काल से भारत ने विश्व को धर्म की दृष्टि दी है।

 जयशंकर प्रसादजी ने कहा है-विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम|

किंतु समय के क्रूर आघातों ने, इतिहास की निर्मम करवटों ने और अपराधीनता की बेड़ियों ने धार्मिक नेतृत्व को हमसे सदा के लिए छीनने का असफल प्रयास किया है। 

सभी दिन समान नहीं होते। भारत ने शांति, व्यापार और ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विश्व के अनेक प्रगतिशील देशों से सहयोग करना आरंभ कर दिया है। 

अब वह दिन दूर नहीं है जब धार्मिक क्षेत्र में भी भारत फिर से विश्व का नेतृत्व करेगा। मैं समझता हूँ कि धर्म निरपेक्ष इस देश में धर्म की परिकल्पना और धारणा में अंतर आ जाएगा। वह केवल मात्र एक व्यक्तिगत साधना न बनकर व्यक्ति में सामाजिक दायित्व, राष्ट्रीय ,भाईचारा, ईमानदारी और नैतिक गुणों की अभिवृद्धि भी करेगा ।

आज भारत का राजनीतिक क्षितिज नाना प्रकार के विरोधी रंगों से मटमैला-सा हो उठा है। मैं समझता हूँ कि मेरा यह अत्यंत मधुर सपना, हमारे अपने प्रयत्नों से पूर्ण होगा। और तब सच्चे अर्थों में प्रजा का कल्याण होगा।

मेरा यह मधुर सपना केवल संभावनाओं पर ही आधारित नहीं है वरन् देश का संपूर्ण मानस जिस ढंग से क्रियाशील है, उससे मुझे अपना सपना शीघ्र ही साकार होने वाला प्रतीत हो रहा है। 

मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी है कि मेरा सपना पूरा होते ही भारत विश्व का सर्वशक्तिमान देश होगा। ऐसी भविष्यवाणियाँ सुनने को भी मिल रही हैं। जिस प्रकार से हम अपने विकास की ओर अग्रसर हैं उससे मेरे सपने में और भी चार चाँद लग जाएँगे ।

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स्वप्न देखना एक जागृत-चेतन प्रवृत्ति है। अस्वस्थ, हीन और दुर्बल हृदय व्यक्ति बहुरंगी सपने नहीं देख सकते । संकल्पशील और साहसी लोग सदैव अपने संपनों से काल देवता का श्रृंगार  करते आए हैं । 

उन्हें अपने सपनों से मोह हुआ करता है। उन्होंने अपने सपनों को अपने रक्त कणों से सींचा एवं उनको साकार भी किया है। इस देश के एक वयोवृद्ध संत ने भी इस महान देश के लिए सपना देखा था । 

इस सपने को साकार करने के लिए उसने अपने जीवन का सर्वस्व होम कर दिया। वह सपना लाखों-करोड़ों का सपना बन गया ।

अपने इस विराट देश के लिए मेरा भी एक सपना है, जिसको पूरा करने के लिए मैं प्रयत्नशील हूँ। साथ ही लाखों देशवासियों का भी आह्वान करता हूँ कि वे अपनी इस मातृभूमि के लिए स्वयं भी बहुरंगी सपने देखें ।

मेरी यही कामना है कि-

मेरे भारत देश में न कोई भूखा हो, न रोगी हो, न नग्न हो, न गरीब हो, और न शिक्षा से विहीन हो। हे प्रभु! मेरा  भारत देश की उन्नति हो ।

अपने सपने को साकार करने के लिए मुझे अपने देश के सांस्कृतिक, आर्थिक, बौद्धिक और राजनीतिक सभी पहलुओं को देखना होगा। 

इसके सांस्कृतिक भविष्य के संबंध में मेरा सपना बड़ा ही मनोरम और आशावर्धक है। यों तो सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत ने नित ही सदैव नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं तथा अपनी सांस्कृतिक विरासत पर भारत को सदा से ही अभिमाना रहा  है। 

परंतु जिस सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत का सपना मैं देख रहा हूँ वह और भी भव्य और चमत्कारपूर्ण हैं। मेरे सपने के अनुसार प्रत्येक नगर और उपनगर में बड़े-बड़े सांस्कृतिक -केन्द्र स्थापित हो चुके होंगे जहाँ विविध प्रकार की संस्कृतिक गतिविधियाँ संपन्न होंगी। 

राष्ट्रीय,सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ विविध अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का भी आयोजन होगा, जिससे एकता और सद्भाव में आशातीत अभिवृद्धि होगी।

आर्थिक दृष्टि से भारत आज भी विषम दौर से गुजर रहा है। यद्यपि अपने आर्थिक निर्माण की दशा में इसने कई मंजिलों को पार कर लिया है फिर भी यहाँ के निवासियों को भरपेट भोजन नहीं मिलता । 

यहाँ के किसान जो आज अपना खून-पसीना एक करके पूंजीपतियों और सामंतों के लिए अन्न पैदा करते हैं वे नवीन आर्थिक परिवर्तनों से समृद्ध हो उठेंगे। गाँव-गाँव में वनरोपन के नवीन साधनों में अभिवृद्धि होगी। 

गाँव-गाँव में विद्युत का पक्की सड़कों का जाल-सा बिछ जाएगा। पानी की निकासी के लिए नालियों का भी उचित प्रबंध कर लिया जाएगा। हर घर में दूरदर्शन, दूरभाष और घूमने के लिए कार होगी। 

जहाँ तक नगरों का संबंध है, उनमें भारी औद्योगिक विकास हो जाएगा। मजदूरों की दशा सुधर जाएगी। मिलों में मजदूरों की भागीदारी होगी। उत्पादन के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण हो जाएगा। कहने का तात्पर्य है कि आर्थिक असमानता दूर होगी, जिससे भारत संसार के अतिसंपन्न देशों की श्रेणी में जा खड़ा होगा ।

सभ्यता के आदि काल से भारत ने विश्व को धर्म की दृष्टि दी है।

 जयशंकर प्रसादजी ने कहा है-विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम|

किंतु समय के क्रूर आघातों ने, इतिहास की निर्मम करवटों ने और अपराधीनता की बेड़ियों ने धार्मिक नेतृत्व को हमसे सदा के लिए छीनने का असफल प्रयास किया है। 

सभी दिन समान नहीं होते। भारत ने शांति, व्यापार और ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विश्व के अनेक प्रगतिशील देशों से सहयोग करना आरंभ कर दिया है। 

अब वह दिन दूर नहीं है जब धार्मिक क्षेत्र में भी भारत फिर से विश्व का नेतृत्व करेगा। मैं समझता हूँ कि धर्म निरपेक्ष इस देश में धर्म की परिकल्पना और धारणा में अंतर आ जाएगा। वह केवल मात्र एक व्यक्तिगत साधना न बनकर व्यक्ति में सामाजिक दायित्व, राष्ट्रीय ,भाईचारा, ईमानदारी और नैतिक गुणों की अभिवृद्धि भी करेगा ।

आज भारत का राजनीतिक क्षितिज नाना प्रकार के विरोधी रंगों से मटमैला-सा हो उठा है। मैं समझता हूँ कि मेरा यह अत्यंत मधुर सपना, हमारे अपने प्रयत्नों से पूर्ण होगा। और तब सच्चे अर्थों में प्रजा का कल्याण होगा।

मेरा यह मधुर सपना केवल संभावनाओं पर ही आधारित नहीं है वरन् देश का संपूर्ण मानस जिस ढंग से क्रियाशील है, उससे मुझे अपना सपना शीघ्र ही साकार होने वाला प्रतीत हो रहा है। 

मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी है कि मेरा सपना पूरा होते ही भारत विश्व का सर्वशक्तिमान देश होगा। ऐसी भविष्यवाणियाँ सुनने को भी मिल रही हैं। जिस प्रकार से हम अपने विकास की ओर अग्रसर हैं उससे मेरे सपने में और भी चार चाँद लग जाएँगे ।

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स्वप्न देखना एक जागृत-चेतन प्रवृत्ति है। अस्वस्थ, हीन और दुर्बल हृदय व्यक्ति बहुरंगी सपने नहीं देख सकते । संकल्पशील और साहसी लोग सदैव अपने संपनों से काल देवता का श्रृंगार  करते आए हैं । 

उन्हें अपने सपनों से मोह हुआ करता है। उन्होंने अपने सपनों को अपने रक्त कणों से सींचा एवं उनको साकार भी किया है। इस देश के एक वयोवृद्ध संत ने भी इस महान देश के लिए सपना देखा था । 

इस सपने को साकार करने के लिए उसने अपने जीवन का सर्वस्व होम कर दिया। वह सपना लाखों-करोड़ों का सपना बन गया ।

अपने इस विराट देश के लिए मेरा भी एक सपना है, जिसको पूरा करने के लिए मैं प्रयत्नशील हूँ। साथ ही लाखों देशवासियों का भी आह्वान करता हूँ कि वे अपनी इस मातृभूमि के लिए स्वयं भी बहुरंगी सपने देखें ।

मेरी यही कामना है कि-

मेरे भारत देश में न कोई भूखा हो, न रोगी हो, न नग्न हो, न गरीब हो, और न शिक्षा से विहीन हो। हे प्रभु! मेरा  भारत देश की उन्नति हो ।

अपने सपने को साकार करने के लिए मुझे अपने देश के सांस्कृतिक, आर्थिक, बौद्धिक और राजनीतिक सभी पहलुओं को देखना होगा। 

इसके सांस्कृतिक भविष्य के संबंध में मेरा सपना बड़ा ही मनोरम और आशावर्धक है। यों तो सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत ने नित ही सदैव नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं तथा अपनी सांस्कृतिक विरासत पर भारत को सदा से ही अभिमाना रहा  है। 

परंतु जिस सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत का सपना मैं देख रहा हूँ वह और भी भव्य और चमत्कारपूर्ण हैं। मेरे सपने के अनुसार प्रत्येक नगर और उपनगर में बड़े-बड़े सांस्कृतिक -केन्द्र स्थापित हो चुके होंगे जहाँ विविध प्रकार की संस्कृतिक गतिविधियाँ संपन्न होंगी। 

राष्ट्रीय,सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ विविध अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का भी आयोजन होगा, जिससे एकता और सद्भाव में आशातीत अभिवृद्धि होगी।

आर्थिक दृष्टि से भारत आज भी विषम दौर से गुजर रहा है। यद्यपि अपने आर्थिक निर्माण की दशा में इसने कई मंजिलों को पार कर लिया है फिर भी यहाँ के निवासियों को भरपेट भोजन नहीं मिलता । 

यहाँ के किसान जो आज अपना खून-पसीना एक करके पूंजीपतियों और सामंतों के लिए अन्न पैदा करते हैं वे नवीन आर्थिक परिवर्तनों से समृद्ध हो उठेंगे। गाँव-गाँव में वनरोपन के नवीन साधनों में अभिवृद्धि होगी। 

गाँव-गाँव में विद्युत का पक्की सड़कों का जाल-सा बिछ जाएगा। पानी की निकासी के लिए नालियों का भी उचित प्रबंध कर लिया जाएगा। हर घर में दूरदर्शन, दूरभाष और घूमने के लिए कार होगी। 

जहाँ तक नगरों का संबंध है, उनमें भारी औद्योगिक विकास हो जाएगा। मजदूरों की दशा सुधर जाएगी। मिलों में मजदूरों की भागीदारी होगी। उत्पादन के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण हो जाएगा। कहने का तात्पर्य है कि आर्थिक असमानता दूर होगी, जिससे भारत संसार के अतिसंपन्न देशों की श्रेणी में जा खड़ा होगा ।

सभ्यता के आदि काल से भारत ने विश्व को धर्म की दृष्टि दी है।

 जयशंकर प्रसादजी ने कहा है-विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम|

किंतु समय के क्रूर आघातों ने, इतिहास की निर्मम करवटों ने और अपराधीनता की बेड़ियों ने धार्मिक नेतृत्व को हमसे सदा के लिए छीनने का असफल प्रयास किया है। 

सभी दिन समान नहीं होते। भारत ने शांति, व्यापार और ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विश्व के अनेक प्रगतिशील देशों से सहयोग करना आरंभ कर दिया है। 

अब वह दिन दूर नहीं है जब धार्मिक क्षेत्र में भी भारत फिर से विश्व का नेतृत्व करेगा। मैं समझता हूँ कि धर्म निरपेक्ष इस देश में धर्म की परिकल्पना और धारणा में अंतर आ जाएगा। वह केवल मात्र एक व्यक्तिगत साधना न बनकर व्यक्ति में सामाजिक दायित्व, राष्ट्रीय ,भाईचारा, ईमानदारी और नैतिक गुणों की अभिवृद्धि भी करेगा ।

आज भारत का राजनीतिक क्षितिज नाना प्रकार के विरोधी रंगों से मटमैला-सा हो उठा है। मैं समझता हूँ कि मेरा यह अत्यंत मधुर सपना, हमारे अपने प्रयत्नों से पूर्ण होगा। और तब सच्चे अर्थों में प्रजा का कल्याण होगा।

मेरा यह मधुर सपना केवल संभावनाओं पर ही आधारित नहीं है वरन् देश का संपूर्ण मानस जिस ढंग से क्रियाशील है, उससे मुझे अपना सपना शीघ्र ही साकार होने वाला प्रतीत हो रहा है। 

मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी है कि मेरा सपना पूरा होते ही भारत विश्व का सर्वशक्तिमान देश होगा। ऐसी भविष्यवाणियाँ सुनने को भी मिल रही हैं। जिस प्रकार से हम अपने विकास की ओर अग्रसर हैं उससे मेरे सपने में और भी चार चाँद लग जाएँगे ।

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